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संस्थापक सन्देश

प्रकाशवीर शास्त्री जी राष्ट्र को मात्र एक भौगोलिक एवम राजनैतिक इकाई नहीं मानते थे , वह राष्ट्र को सजीव इकाई मानते थे |
भारत भूमि को एक जीवंत स्वरुप में देखते थे , प्रकृति के वरदान से यह भूमि कई विवधताओं से परिपूर्ण है चाहे उत्तर में बर्फीले पहाड़ , दक्षिण में विशाल समुद्री तट, पश्चिन में मरुभूमि और पूर्व में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान |
इसी कारण शायद यहां अलग -अलग दिखने वाले लोग और अनेक बोलियां व् भाषाएँ है |
इस विविधता से भरे देश को एक सूत्र में पिरो रखने के लिए सतत प्रयास आवश्यक है |
प्रकाशवीर जी इसी विचारधारा से प्रेरित हो सदा राष्ट्रिय एकता एवम अखंडता के लिए समर्पित रहे , चाहे वह संसद के अंदर हो या बहार हो |
राष्ट्रिय एवम सांस्कृतिक एकता को अक्षुण्ण बनाने के लिए उन्होंने कई विचार उठाये जैसे राष्ट्रिय भाषा का उत्थान , विदेश निति पर राजनैतिक एकजुटता , धारा- ३७० का निरस्त्रीकरण , भ्रष्टाचार पर लगाम, जातिवाद निर्मूलन, इत्यादि |
इन्ही विचारों से प्रेरित हो यह न्यास राष्ट्रिय एकता के विषयों पर संगोष्ठी एवम व्याख्यानमाला का आयोजन कर लोगों में अलख जगाने का प्रयास करता है
शरद त्यागी
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